

ख़बर टाइम्स छत्तीसगढ़

रायगढ़। घरघोड़ा न्यायालय में विशेष लोक अभियोजक (POCSO एक्ट) के पद पर अधिवक्ता अर्चना मिश्रा की नियुक्ति को लेकर प्रक्रिया की पारदर्शिता और नियमों के पालन को लेकर अधिवक्ता संघ सदस्य, घरघोड़ा द्वारा औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई गई है। संघ सदस्य ने इस विषय में प्रशासन से स्पष्टता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने की अपील की है।
संघ सदस्य के अनुसार, उक्त पद के लिए विधिवत पाँच योग्य अधिवक्ताओं का एक पैनल तैयार कर प्रशासन को प्रेषित किया गया था, जिसमें अर्चना मिश्रा का नाम सम्मिलित नहीं था। इसके अतिरिक्त, यह भी बताया गया है कि नियुक्ति हेतु आवेदन प्रत्यक्ष रूप से जिला एवं सत्र न्यायाधीश को प्रस्तुत किया गया, जो कि परंपरागत प्रोटोकॉल एवं प्रक्रिया का उल्लंघन माना जा रहा है। आमतौर पर इस प्रकार के आवेदन अधिवक्ता संघ सदस्य अथवा सक्षम प्रशासनिक माध्यम से अग्रेषित किए जाते हैं।
संघ सदस्य ने यह भी तथ्य प्रस्तुत किया है कि विशेष लोक अभियोजक पद के लिए सात वर्ष का न्यूनतम अधिवक्ता अनुभव अपेक्षित होता है, जबकि अर्चना मिश्रा का घरघोड़ा न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में पंजीयन वर्ष 2022 से है। इस आधार पर अनुभव की न्यूनतम आवश्यकता पर भी प्रश्नचिह्न लग रहे हैं। ई-कोर्ट पोर्टल पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, उनके द्वारा घरघोड़ा न्यायालय में अब तक प्रस्तुत मामलों की संख्या भी अपेक्षाकृत सीमित बताई जा रही है।
हालाँकि अधिवक्ता संघ सदस्य ने यह स्पष्ट किया है कि उनकी आपत्ति किसी व्यक्ति विशेष के विरुद्ध नहीं है, बल्कि यह नियुक्ति प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता एवं विधिसम्मत संचालन सुनिश्चित करने के संदर्भ में है। उनका मानना है कि न्यायिक पदों पर नियुक्तियाँ पूर्व निर्धारित मानदंडों और प्रक्रिया के अनुरूप की जाएँ, ताकि न्यायिक संस्थाओं की साख और जनविश्वास अक्षुण्ण रह सके।
संघ सदस्य ने इस नियुक्ति पर पुनर्विचार करते हुए, निष्पक्षता एवं योग्यता के आधार पर निर्णय लिए जाने की माँग की है। उनका तर्क है कि यदि चयन प्रक्रियाएँ स्पष्ट, न्यायसंगत और समावेशी हों, तो इससे न केवल योग्य अधिवक्ताओं को अवसर प्राप्त होंगे, बल्कि न्यायिक प्रणाली की गरिमा एवं विश्वसनीयता भी सुदृढ़ होगी।
यह प्रकरण इस बात की ओर संकेत करता है कि न्यायिक पदों पर नियुक्तियों में पारदर्शिता, औचित्य और प्रक्रियात्मक मर्यादा का पालन अत्यंत आवश्यक है। इससे संस्थागत विश्वास बना रहता है और अधिवक्ता समुदाय तथा आमजन के मन में न्यायपालिका के प्रति सम्मान भाव सुदृढ़ होता है।